BIG SALARY V/S PERMANENT JOB-CAREER GUIDE

salary vs stable job
BIG SALARY V/S PERMANENT JOB
राजेश वर्मा कुछ साल पहले एक संस्थान में मिड-लेवल अधिकारी के रूप में काम करते थे। मैनेजमेंट के साथ उनकी टयूनिंग भी ठीक-ठाक चल रही थी। लेकिन सैलरी को लेकर उनके मन में थोड़ा असंतोष रहता था। यह असंतोष तब और बढ़ जाता, जब अपेक्षाकृत युवा उम्र के उनके अधीनस्थ उनसे ज्यादा सैलरी पर दूसरे संस्थान में ज्वाइन कर लेते। 
हालांकि वह अपना असंतोष किसी पर जाहिर नहीं होने देते, लेकिन एक समय आते-आते उनके मन में भी यह बात बैठ गई कि अगर वह भी स्विचओवर करें, तो प्रमोशन के साथ-साथ सैलरी का भी लाभ मिल सकता है। इस सोच के साथ उन्होंने गुपचुप तरीके से प्रयास आरंभ कर दिया। इस प्रयास का कुछ ही समय में उन्हें परिणाम भी मिल गया, जब उन्हें दोगुनी से भी ज्यादा सैलरी का ऑफर मिल गया। अब सोचने का तो कोई सवाल ही नहीं था। उन्होंने बिना देर किए संस्थान को टाटा टाटा बाय बाय कर दिया और उत्साह के साथ नया संस्थान ज्वाइन कर लिया। उन्हें निकट भविष्य में लांच किए जाने वाले एक खास प्रोजेक्ट में लगाया गया। लेकिन वह प्रोजेक्ट लंबा खिंचता गया और कुछ महीने बाद उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब राजेश को एक अलग डिपार्टमेंट में शिफ्ट कर दिया गया। असहज होने के बावजूद वह यहां काम करने की कोशिश करते रहे।
इसी बीच संस्थान मंदी का शिकार हो गया और वहां छंटनी आरंभ हो गई। उन्हें आए अभी साल भर ही हुए थे, लेकिन वे भी इसकी भेंट चढ़ गए। अब उन्हें अपने जोश पर पछतावा होने लगा, लेकिन आगे बढ़ने के सिवा और कोई चारा नहीं था। उन्होंने दूसरी जगहों पर ट्राई करना आरंभ किया। कुछ समय बाद ठीक-ठाक सैलरी पर नौकरी तो मिल गई, लेकिन नियुक्ति हुई दूर के एक शहर में। लेकिन कुछ महीने बाद ही यहां भी असुविधा शुरू हो गई। अब वे फिर नौकरी की तलाश में जुट गए। यह संयोग ही था कि नौकरी में रहते हुए ही उन्हें दूसरी नौकरी मिल गई, लेकिन एक बार फिर उन्हें दूर के एक शहर में जॉब मिली। मजबूरी में कुछ समय तक तो उन्होंने वहां काम किया, फिर एमडी से गुजारिश कर दिल्ली ट्रांसफर करा लिया। लेकिन कुछ महीने बाद फिर वही हाल हो गया। उनकी टीम के लोग ही उनकी शिकायत करने लगे। बार-बार की शिकायत से तंग आकर मैनेजमेंट ने उनकी क्लास ली और चेतावनी देते हुए एक थैंकलेस डिपार्टमेंट में डाल दिया। अब उनके सामने नौकरी को निभाने के अलावा कोई चारा नहीं था। वेतन अच्छा होने के कारण वह नौकरी छोड़ भी नहीं सकते थे, लेकिन जलालत के चलते नौकरी में एक-एक दिन भारी पड़ रहा था। 
पेशेवरों की पीड़ा- आज राजेश जैसी स्थिति का सामना देश के तमाम प्रोफेशनल्स को करनी पड़ रही है। दरअसल, चार-पांच साल पहले अर्थव्यवस्था और अधिकांश कंपनियों की मजबूती के माहौल में मुंहमांगे पैकेज दिए जा रहे थे, लेकिन यह बुलबुला जल्दी ही फूट गया और भारी-भरकम पैकेज वाले कर्मचारी कंपनियों को बोझ लगने लगे। ऐसे में उनकी नौकरी पर खतरा मंडराने लगा और कुछ समय बाद ही अधिकाश कर्मचारी सड़क पर आ गए। मोटी सैलरी मिलने के दौरान तमाम लोगों ने उत्साह में आकर कर्ज लेकर कार, घर, लग्जरी के सामान ले लिए थे, पर अब उनकी ईएमआई देना और घर का खर्च चलाना भी मुश्किल होने लगा। कुछ मल्टीटास्किंग प्रोफेशनल्स को जैसे-तैसे नई नौकरी तो मिल जा रही है, लेकिन इसके लिए भी उन्हें कई समझौते करने पड़ रहे हैं। ऐसे में सभी के दिमाग में अब केवल यही बात आ रही है कि मोटी सैलरी के लोभ में जंप मारने में बुद्धिमानी कतई नहीं है। जीवन को सुचारु तरीके से चलाने के लिए बेहतर यही होगा कि ऐसी नौकरी ढूंढ़ी जाए, जो स्थायी और सुरक्षित हो। बेशक इसके लिए उन्हें कम सैलरी मिले। 
सर्वे से भी हुई पुष्टि- हाल में सामने आए स्टाफिंग एवं एचआर फर्म रैंडस्टैंड इंडिया के एक सर्वे से भी इसी बात की पुष्टि होती है। मंदी के असर ने दुनिया भर के लोगों के साथ भारतीयों की सोच को भी बदल दिया है। यही कारण है कि अब उन्हें भारी-भरकम पैकेज वाले जॉब की जगह सुरक्षित नौकरी कहीं ज्यादा भाने लगी है। पायलटों और एयरहोस्टेस द्वारा संकट में फंसी किंगफिशर एयरलाइन को छोड़ सरकारी एयरलाइन एयरइंडिया में घुसने की जुगत भिड़ाना इसी सोच का एक उदाहरण है। इस सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है कि 64 प्रतिशत भारतीय कर्मचारी किसी कंपनी को चुनते समय मोटे वेतन की बजाय नौकरी की सुरक्षा और कंपनी की मजबूत वित्तीय स्थिति पर ध्यान दे रहे हैं। जबकि 50 प्रतिशत कर्मचारी करियर में आगे बढ़ने के मौके देने वाली कंपनी को प्राथमिकता देना चाहते हैं। 2011 में जहां कर्मचारियों की प्राथमिकता में वेतन और अन्य लाभ सबसे ऊपर हुआ करते थे, वहीं 2012 आते-आते ये इस सूची में तीसरे स्थान पर पहुंच गए। हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में नौकरी चुनने का मानदंड भिन्न है। सुरक्षित जॉब चाहने वालों की सबसे अधिक संख्या दूरसंचार क्षेत्र में देखने को मिलती है, जबकि ऑटोमोबाइल सेक्टर में ऐसा नहीं है। परिवहन और लॉजिस्टिक सेक्टर में आज भी कॉम्पिटिटिव सैलरी और अन्य सुविधाओं को ही तरजीह दी जा रही है, जबकि टूर ऐंड ट्रैवेल में सैलरी प्राथमिकता सूची में काफी नीचे है। उधर, पॉवर सेक्टर के प्रोफेशनल्स की नजर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलने वाले वेतन पर कहीं ज्यादा होती है। 
संभलकर बढ़ाएं कदम- आप युवा हैं और आपने अपनी प्रोफेशनल पढ़ाई के बाद अपने पसंदीदा सेक्टर में काम आरंभ किया है। कुछ समय बाद आपको लग सकता है कि आपको आपकी मेहनत के अनुरूप रिटर्न नहीं मिल रहा है। ऐसे में असंतुष्ट होकर जल्दबाजी दिखाने की बजाय ठंडे दिमाग से काम लें। मल्टीटास्कर बनें और अपने वर्तमान काम को पूरी जिम्मेदारी से करते हुए संभावनाएं तलाशते रहें। जब लगे कि वर्तमान संस्थान में आपकी प्रतिभा को उपेक्षित किया जा रहा है। यहां न तो अच्छे पैसे मिल रहे हैं और न ही आगे बढ़ने का अवसर, ऐसे में आप किसी दूसरे मजबूत संस्थान में एंट्री मार सकते हैं। वहां शुरुआत में ही अपनी पहचान साबित कर दें, तभी आपको भरपूर लाभ मिल सकेगा। हां, समय-समय पर कंपनी की जरूरत को समझते हुए अपनी क्षमता-योग्यता और अपने आउटपुट का भी मूल्यांकन करते हुए आवश्यकतानुसार खुद को बदलते भी रहें। यह बदलाव कंपनी की जरूरत के मुताबिक ढालने के लिए होना चाहिए। याद रखें, जब तक कंपनी या संस्थान फायदे में है, तब तक आपकी नौकरी भी सुरक्षित है। ऐसे में जरूरी यही है कि प्रत्येक कर्मचारी अपनी क्षमता का शत-प्रतिशत प्रदर्शन करे।

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